देहरादून। आखिरकार प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार विपक्ष के जाल में फंस गई और बैकफुट पर भी आ गई।
दरअसल इसकी शुरुआत 19 फरवरी को उस दिन हुई जब कांग्रेस के द्वाराहाट विधायक मदन बिष्ट ने सदन के भीतर भाजपा सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ये पहाड़ विरोधी सरकार है । बस यहीं से सरकार की पैरवी में उतरे प्रेमचंद अग्रवाल फंसते चले गए और पहले उन्होंने विधायक मदन बिष्ट पर शराब पीकर सदन में आने के आरोप लगाए और फिर असंसदीय भाषा का इस्तेमाल भी कर दिया। जिसके बाद उत्तराखंड में प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया जो अब उनके इस्तीफे तक जा पहुंचा ।
जहां भाजपा से एक तरफ पहाड़ी समाज नाराज चल रहा था, वहीं अब मैदानी समाज भी भाजपा से नाराज हो गया है। प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद बनिया समाज भी अब खुलकर भाजपा के खिलाफ टिप्पणियां कर रहा है ऐसे में भाजपा अब मँझदार में फंसी नजर आ रही है।
पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार के बैकफुट पर आने को हालांकि जनभावनाओं का सम्मान भी भाजपा की तरफ से बताया जा रहा है।
उत्तराखंड में मार्च का महीना अक्सर सरकार पर संकट लेकर आता है । 2016 में हरीश रावत, 2021 में त्रिवेंद्र रावत और अब प्रेमचंद का इस्तीफा।
अब 2027 के विधानसभा चुनाव में महज 22 महीने का समय शेष है ऐसे में भाजपा के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी । दस वर्षों की एंटी इनकें बेसी, कुछ सीटों पर भाजपा विधायकों की उदासीनता और परिवर्तन की टैग लाइन भाजपा के लिए आसान नहीं होगी।
वहीं कांग्रेस नेताओं के बिखरे गुट , उत्तराखंड के कुछ युवाओं द्वारा बनाए जा रहे अलग अलग संगठन , यूकेडी समेत अन्य क्षेत्रीय दलों के तालमेल न होने के कारण भाजपा इसे अपना प्लस प्वाइंट मानकर चल रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि भाजपा को हराना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि भाजपा के पास मजबूत प्रबंधन , कई आनुषांगिक संगठन और शीर्ष नेताओं की लंबी चौड़ी फौज है वहीं उत्तराखंड जैसे हिंदू बाहुल्य राज्य में हिंदुत्व के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों 2027 के प्रचार की कमान दी जा सकती है ।
अब ऐसे में उत्तराखंड में बन रहे राजनीतिक संगठनों , क्षेत्रीय दलों , राष्ट्रीय दलों के लिए मंथन करने का समय होगा कि भाजपा के चक्रव्यू को वो भेद पाएंगे या इस चुनावी रण में दमखम से लड़ेंगे तो जरूर लेकिन अभिमन्यु की तरफ फंस जाएंगे बड़ा सवाल है ?